मण्डी की महशिवरात्रि
हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में अंतराष्ट्रीय स्तर पर मनाये जाने वाला शिवरात्रि मेला हर वर्ष कृष्ण पक्ष के 13वें दिन/13वीं रात (फाल्गुन के दिन सूर्योदय के बाद 14वें दिन उपवास/व्रत) फाल्गुन महीने में आता है ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार फरवरी/मार्च से मेल खाता है, को मनाया जाता है यह मेला बहुत ही लोकप्रिय है जिस कारण इसे अंतराष्ट्रीय मेला घोषित कर दिया गया हैl यह मेला 7 दिन चलता है जिसमें रात्रि में भी कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैl इस मेले के मुख्य आकर्षक यहां के स्थानीय देवी देवता होते है जोकि 200 से 300 के करीब मंडी के पड्डल मैदान में उपस्तिथ होते हैl ये देवी देवता जिस भी स्थान से सम्बन्ध रखते है वहाँ के स्थानीय लोग इन्हें पालकी में, या पीठ पर उठा कर पड्डल मैदान तक लाते हैl समय बदलने के साथ साथ कुछ लोग अपने देवी या देवता को गाडियों में लाने और ले जाने लगे है ।
आज की तारीख में शिवरात्रि मेला किस तरह से होता है क्या, क्या कार्यक्रम होते है, क्या मुख्य आकर्षक रहते है ये आप बखूबी जानते है । यहां आपको शिवरात्रि मेले के इतिहास से अवगत किया जा रहा है, कि क्या समय रहा होगा जब यह मेला शुरू हुआ और क्या उस समय परिस्थितियां रही होगी? इसके लिए लोगों की अपनी अपनी धारणाएं है । वो लोग जो इस मेले को काफी समय से देखते आ रहे है, जिन्होंने इस मेले में पुराने समय से अब तक हो रहे हर साल के छोटे बड़े बदलाव को देखा है, उनसे मिली जानकारी को साँझा किया है ।
इतिहास
शिवरात्रि, इस दिन भगवान शिव का विवाह पार्वती से हुआ था लेकिन ये बात मंडी की शिवरात्रि मेले से बिल्कुल भी सम्बन्ध नहीं रखतीl तो फिर मंडी की शिवरात्रि मेले का सम्बंद शिवरात्रि से कैसे है? बात सन 1301 ई. की है जब पुरानी मंडी रियासत का पहला राजा बाण सेन हुआ करता था बाण सेन भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त थाl मंडी में शिव विवाह रचाने की परम्परा राजा बाण सेन ने ही शुरू की थी सन 1527 ई. में राजा आजवेर सेन ने बाबा भूतनाथ मंदिर (जोकि भगवान शिव को समर्पित है) का निर्माण करवाया था और नए मंडी शहर को बसाया थाl सन 1637 ई. में मंडी के राजा सूरज सेन हुआ करते थे जिनके 18 पुत्र थे राजा सूरज सेन के इन 18 पुत्रों का जीवन, राजा के जीवन काल के समय में ही समाप्त हो गया था अब राजा सूरज सेन के सामने मंडी रियासत के लिए कोई उत्तराधिकारी नहीं रह गया थाl उस समय राजा सूरज सेन ने उत्तराधिकारी के रूप में एक चाँदी की प्रतिमा को बनवाया, जिसे राजा माधव राय (माधव राय का मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है) का नाम दिया गया अब राजा सूरज सेन ने अपना राज्य राजा माधव राय को सौंप दिया था ।
सन 1788 ई. में मंडी रियासत की बागडोर महाराजा ईश्वरी सेन ने संभाली थीl महाराजा ईश्वरी सेन के शासन काल में कांगड़ा के महाराजा संसार चाँद के साथ एक युद्ध के दौरान मंडी के राजा ईश्वरी सेन को, संसार चन्द ने बंधी बनाया थाl काफी लम्बे समय तक बंदी रहने के बाद जब राजा ईश्वरी सेन वापिस अपने राज्य मंडी पहुंचा तो वहाँ की जनता अपने देवी देवताओं के साथ मंडी अपने राजा से मिलने पहुंचे थे ।
अपने राजा के वापिस आने की खुशी में मंडी की जनता ने जश्न मनाया थाl इस जश्न के एक दो दिन बाद हिन्दुओं का त्यौहार शिवरात्रि थी जिसे फिर राजा के हुक्कम से इस त्यौहार को यहां की जतना ने अपने देवी देवताओं के साथ मिलकर बड़ी धूम धाम से मेले के रूप में मनाया थाl राजा ईश्वरी सेन इस पर्व को चार-पांच दिन मनाने का फैसला कियाl शिवरात्रि मेले की शोभा यात्रा (जरीब) का नेतृत्व राजा माधव राय द्वारा किया जाने लगाl मंडी के सभी देवी देवता शिवरात्रि में आकर पहले राजा माधव राय से मिलते थे और उसके बाद राजा सूरज सेन से मिलते थे ।
राजाओं के समय में मंडी का जो भी राजा हुआ करते थे वो शिवरात्रि के दिन सुबह पहले राजा माधव राय की पूजा करते थे उसके बाद बाबा भूतनाथ के मंदिर में जा कर शिवलिंग की पूजा करते थेl जब राजाओं के राज समाप्त हो गए तो उस समय शिवरात्रि मेले का कार्यभार हिमाचल सरकार ने संभाला था उसके बाद अब शिवरात्रि के दिन मंडी जिलाधीश सुबह सबसे पहले राजा माधव राय की पूजा करते है उसके बाद बाबा भूतनाथ के मन्दिर में जा कर शिवलिंग की पूजा करते है और इस तरह से हर साल मंडी शिवरात्रि मेले का शुभारम्भ किया जाता है