रामपुर बुशहर अंतराष्ट्रीय लवी मेले का इतिहास @thesamskara

रामपुर बुशहर अंतराष्ट्रीय लवी मेले का इतिहास….

पुराने समय में तिब्बत के व्यापारी लंबी यात्रा तय करके यहां पहुंचते थे। गठीले और कड़ाके की ठंड में भी ज्यादा भार उठाने वाले चामुर्थी नस्ल के घोड़ों पर वे सामान लाते थे। अब इस मेले में इसी नस्ल के घोड़े मिलते हैं जिन्हें व्यापारी अच्छे दामों पर खरीदकर ले जाते हैं। इस घोड़े को पहाड़ का जहाज कहा जाता है। लवी मेले में किन्नौर, लाहौल-स्पीति, कुल्लू और प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से व्यापारी पैदल पहुंचते थे।

अब समय के साथ लवी मेले का स्वरूप भी बदल गया है। हर साल 11 से 14 नवंबर तक लवी मेला होता है। अब बाहरी देशों से व्यापारी नहीं आते। मेले की बेहतरी को चार दिन सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन होता है। किन्नौरी मार्केट सजती है। इसमें जिला किन्नौर से आने वाले सूखे मेवों, बादाम, काजू, सेब, मटर, ऊनी दोड़ू, पट्टू, कोट पट्टी, शॉल के साथ ही काला जीरा, रत्नजोत, चिलगोजा बिकता है।

मेले से पूर्व पशुपालन विभाग हर साल घोड़ा प्रदर्शनी और घोड़ों की गुब्बारा फोड़ जैसी गतिविधियां कराता है। मेले में गर्म कपड़ों के साथ, रोजमर्रा की जरूरत के सामान, मिठाइयां और खानपान की दुकानें लगती हैं।

अंतरराष्ट्रीय लवी मेले में तिब्बत, अफगानिस्तान और उज्वेकिस्तान के व्यापारी कारोबार करने के लिए आते थे। वे विशेष रूप से ड्राई फ्रूट, ऊन, पशम और भेड़-बकरियों सहित घोड़ों को लेकर यहां आते थे। बदले में व्यापारी रामपुर से नमक, गुड़ और अन्य राशन लेकर लेकर जाते थे। यह नमक मंडी जिले के गुम्मा से लाया जाता था। लवी मेले में चामुर्थी घोड़ों का भी कारोबार किया जाता था। ये घोड़े उत्तराखंड से लाए जाते थे।

इसके अलावा ऊन से बने उत्पादों की खरीद-फरोख्त भी होती थी। शिमला जिले की रामपुर रियासत में लवी मेला मध्य शताब्दी से चल रहा है।

1911 से कुछ वर्ष पूर्व रामपुर में तिब्बत और हिंदुस्तान के बीच व्यापार शुरू हुआ। उस समय राजा केहर सिंह ने तिब्बत सरकार के साथ व्यापार को लेकर संधि की थी। व्यापार मेले में कर मुक्त व्यापार होता था। लवी मेले में किन्नौर, लाहौल-स्पीति, कुल्लू और प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से व्यापारी पैदल पहुंचते थे।

मुख्यमंत्री बनने के बाद वीरभद्र सिंह ने वर्ष 1985 में इस मेले को अंतरराष्ट्रीय मेला घोषित किया था। अब समय के साथ-साथ लवी मेले का स्वरूप भी बदल गया है।

पूर्व में ग्रामीण क्षेत्रों से पहुंचकर लोग वर्ष भर का सामान लवी से खरीदते थे, लेकिन अब जगह-जगह दुकानों की व्यवस्था होने से लवी मेले में होने वाले व्यापार पर भी असर देखने को मिल रहा है।

मेले में व्यापार के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। हर वर्ष 11 से 14 नवंबर तक होने वाले इस अंतरराष्ट्रीय लवी मेले में स्टार कलाकारों के साथ प्रदेश भर के विभिन्न क्षेत्रों की संस्कृति भी देखने को मिलती है। चार दिन तक चलने वाले इस सांस्कृतिक कार्यक्रमों में स्कूली बच्चों के कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं।