शुकदेव ऋषि जिन्हें स्थानीय बोली में थट्टी मड़घयाल के नाम से जाना जाता है सात बहनों का एक भाई शुकदेव ऋषि जी की कथा…
तोता बने शुकदेव ने जब सुन ली अमर कथा तो शिवजी उसे मारने को दौड़े और फिर हुआ गजब
राजा परीक्षित को सुनाई थी यह कथा
जब एक बार राजा परीक्षित शिकार खेलने के लिए जंगल में गए अंधेरा होने के कारण वह जंगल में अपना रास्ता भटक गए थे और वह भटकते हुए एक ऋषि के पास पहुंचे वह ऋषि अपनी साधना में लीन थे राजा परीक्षित का भूख और प्यास के कारण बुरा हाल हो रहा था उन्होंने उस ऋषि से पानी मांगा तपस्या में लीन होने के कारण उस देशों ने उनकी बात को नहीं सुना फिर राजा ने क्रोधित होकर वहां पर मरे हुए सांप को ऋषि के गले में डाल दिया और वहां से क्रोधित होकर चले गए ।
यह दृश्य उस ऋषि का पुत्र देख रहा था और उसने राजा को श्राप दिया कि साथ में दिन आप की मृत्यु तक्षक सांप के काटने से हो जाएगी जब उस ऋषि आंखें खुली तो उसके बेटे ने उसे सारा वृत्तांत सुनाया फिर वह ऋषि राजा परीक्षित के पास गए उन्होंने अपने बेटे के द्वारा दिए गए श्राप की माफी मांगी इसके बाद राजा परीक्षित ने इस श्राप से मुक्त होने के लिए उन्हें क्या करना है इसके बारे में उस ऋषि से पूछा तब उस ऋषि ने कहा कि आपको सुखदेव मुनि ही इस श्राप से मुक्त करा सकते हैं इसके बाद नारद मुनि और कुछ ऋषि उनके साथ है ऋषि सुखदेव के आश्रम में पहुंचे और उन्होंने राजा के साथ हुई घटना का सारा वृतांत होने सुनाया
फिर मुनि सुखदेव राजा परीक्षित के पास आए इसके बाद राजा परीक्षित ने सुखदेव मुनि का अतिथि सत्कार किया इसके बाद ऋषि सुखदेव ने प्रसन्न होकर राजा परीक्षित से कहा मोक्ष की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को भगवान श्री हरि का यशोगान करना चाहिए उनके कथा अमृत को सुनना चाहिए यदि व्यक्ति मरते समय श्रीहरि का ध्यान कर ले तो वह मर कर श्री हरि का रूप धारण करता है इसके बाद ऋषि सुखदेव ने राजा परीक्षित से कहा कि अपने मन को एकाग्र चित्त करके भगवान के ध्यान में लगा लो इसके बाद राजा परीक्षित ने महर्षि सुखदेव से श्री हरि कथा अमृत पान कराने का अनुरोध किया फिर ऋषि सुखदेव ने उन्हें 1 सप्ताह में ही श्रीमद भगवत कथा सुना दी थी और उसे सुनने के बाद राजा को बहुत सांत्वना मिली और अंत में राजा परीक्षित को बैकुंठ की प्राप्ति हुई ।
एक प्राचीन कहावत है कि 7 बहनों ने तिल का एक दाना आपस में बांटकर खाया था और ये 7 बहनें शिवाबदार क्षेत्र की प्रमुख देवियों के रूप में जानी जाती हैं। इनमें सबसे बड़ी देवी शत्रु नाशनी देवी बगलामुखी को माना जाता है। इसके बाद मैहणी, धारानागण, सोना सिंहासन, कांढी घटासण, निशू पराशरी और बूढ़ी बुछारण प्रमुख देवियां हैं।
शुकदेव ऋषि जिन्हें स्थानीय बोली में थट्टी मड़घयाल के नाम से जाना जाता है ।
देव शुकदेव ऋषि का यह मंदिर 14वीं शताब्दी का पैगोड़ा शैली का बना हुआ है, जिसमें काष्ठफलक पर खूबसूरत नक्काशी का काम किया गया है।