सच्चियां ज्योता वाली माता ज्वाला देवी जी की गाथा….
ज्वालामुखी मंदिर को जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। कालीधर पर्वत की शांत तलहटी में बसे इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ देवी की कोई मूर्ति नहीं है। ज्वालामुखी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवो को जाता है। इसकी गिनती माता के प्रमुख शक्ति पीठों में होती है।
मान्यता है यहाँ देवी सती की जीभ गिरी थी। यहाँ पर पृथ्वी के गर्भ से नौ अलग अलग जगह से ज्वाला निकल रही है जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया हैं। इन नौ ज्योतियां को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है।
इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद के करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया। यहाँ धधकती ज्वाला बिना घी, तेल दीया और बाती के लगातार जलती रहती है। यह ज्वाला पत्थर को चीरकर बाहर निकलती आती है। ज्वाला देवी की उत्पत्ति से संबंधित कई कथाएं लोगों के बीच बहुत प्रचलित हैं।
अकबर और ध्यानु भगत की कथा –
मुगल बादशाह अकबर और देवी मां के परम भक्त ध्यानु भगत से जुड़ी कथा खासा प्रचलित है। हिमाचल निवासी ध्यानु भगत काफी संख्या में श्रद्धालुओं के साथ माता के दर्शन के लिए जा रहा था। एंटनी बड़ी संख्या देखकर सिपाहियों ने चांदनी चौक (दिल्ली) पर उन्हें रोक लिया और बंदी बनाकर अकबर के दरबार में पेश किया।
बादशाह ने पूछा, तुम इतने आदमियों को साथ लेकर कहां जा रहे हो? ध्यानू ने उत्तर दिया, मैं ज्वाला माई के दर्शन के लिए जा रहा हूं। मेरे साथ जो लोग हैं, वह भी माताजी के भक्त हैं और यात्रा पर जा रहे हैं। संसार का पालन करने वाली मां- अकबर ने कहा यह ज्वाला माई कौन है, वहां जाने से क्या होगा। ध्यानूने कहा कि ज्वाला माई संसार का पालन करने वाली माता हैं। उनका प्रताप ऐसा है उनके स्थान पर बिना तेल-बत्ती के ज्योति जलती रहती है। हम लोग प्रतिवर्ष उनके दर्शन जाते हैं।
इस पर अकबर ने कहा, अगर तुम्हारी बंदगी पाक है तो देवी माता अवश्य तुम्हारी इज्जत रखेगी। इम्तहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन अलग कर देते हैं, तुम अपनी देवी से कहकर उसे दोबारा जिंदा करवा लेना।
इस प्रकार, घोड़े की गर्दन काट दी गई। ध्यानू ने बादशाह से एक माह की अवधि तक घोड़े के सिर व धड़ को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की। अकबर ध्यानू की बात मानते हुए उसे आगे की यात्रा की अनुमति दे दी। ध्यानु साथियों के साथ माता के दरबार में पहुंचा। उसने प्रार्थना की कि मातेश्वरी आप अन्तर्यामी हैं। बादशाह मेरी भक्ती की परीक्षा ले रहा है, मेरी लाज रखना, मेरे घोड़े को अपनी कृपा व शक्ति से जीवित कर देना।
माना जाता है कि अपने भक्त की लाज रखते हुए मां ने घोड़े को फिर से जिंदा कर दिया। यह सब कुछ देखकर बादशाह अकबर हैरान हो गया। अकबर को मां के आगे झुकाया सिर- अकबर ने अपनी सेना के साथ मंदिर की तरफ चल पड़ा। मंदिर पहुंचने पर सेना से मंदिर में पानी डलवाया, लेकिन माता की ज्वाला बुझी नहीं। तब जाकर उसे मां की महिमा का यकीन हुआ।
उसने माता के आगे सिर झुकाया और सोने का छत्र चढ़ाया, लेकिन माता ने वह छत्र कबूल नहीं किया। कहा जाता है कि वह छत्र गिर कर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया। जिसे आज भी मंदिर में देखा जा सकता है।
ज्वालादेवी की ज्योति कथा –
ज्वाला माता से संबंधित गोरखनाथ की कथा इस क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध है। कथा है कि भक्त गोरखनाथ यहां माता की आरधाना किया करता था। एक बार गोरखनाथ को भूख लगी तब उसने माता से कहा कि आप आग जलाकर पानी गर्म करें, मैं भिक्षा मांगकर लाता हूं। माता आग जलाकर बैठ गयी और गोरखनाथ भिक्षा मांगने चले गये।
इसी बीच समय परिवर्तन हुआ और कलियुग आ गया। भिक्षा मांगने गये गोरखनाथ लौटकर नहीं आये। तब ये माता अग्नि जलाकर गोरखनाथ का इंतजार कर रही हैं। मान्यता है कि सतयुग आने पर बाबा गोरखनाथ लौटकर आएंगे, तब-तक यह ज्वाला यूं ही जलती रहेगी।
गोरख डिब्बी –
ज्वाला दवी शक्तिपीठ में माता की ज्वाला के अलावा एक अन्य चमत्कार देखने को मिलता है। मंदिर के पास ही ‘गोरख डिब्बी’ है। यहां एक कुण्ड में पानी खौलता हुआ प्रतीत होता जबकि छूने पर कुंड का पानी ठंडा लगता है।