मां शूलिनी विजय की देवी…
शूलिनी माता का इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा है। माता शूलिनी बघाट रियासत के शासकों की कुलदेवी देवी मानी जाती है। माता शूलिनी का मंदिर सोलन शहर के शीली मार्ग पर स्थित है। शहर की अधिष्ठात्री देवी शूलिनी माता के नाम से ही शहर का नाम सोलन पड़ा, जो देश की स्वतंत्रता से पूर्व बघाट रियासत की राजधानी के रूप में जाना जाता था। यहां का नाम बघाट भी इसलिए पड़ा क्योंकि रियासत में 12 स्थानों का नामकरण घाट के साथ था। माना जाता है कि बघाट रियासत के शासकों ने यहां आने के साथ ही अपनी कुलदेवी शूलिनी माता की स्थापना सोलन गांव में की और इसे रियासत की राजधानी बनाया।
मान्यता के अनुसार बघाट के शासक अपनी कुल देवी की प्रसन्नता के लिए प्रतिवर्ष मेले का आयोजन करते थे। लोगों का मानना है कि मां शूलिनी के प्रसन्न होने पर क्षेत्र में किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा व महामारी का प्रकोप नहीं होता, बल्कि खुशहाली आती है और मेले की यह परंपरा आज भी कायम है।
मां शूलिनी की अपार कृपा के कारण ही शहर दिन-प्रतिदिन सुख व समृद्धि की ओर से अग्रसर है। पहले यह मेला केवल एक दिन ही मनाया जाता था, लेकिन सोलन जिला के अस्तित्व में आने के पश्चात इसका सांस्कृतिक महत्व बनाए रखने, आकर्षक बनाने व पर्यटन दृष्टि से बढ़ावा देने के लिए इसे राज्यस्तरीय मेले का दर्जा दिया गया। अब यह मेला जून माह के तीसरे सप्ताह में तीन दिनों तक मनाया जाता है। पहले छोटे स्तर पर आयोजित होने वाले शूलिनी मेले का आज स्वरूप विशाल हो गया है, आज यह राज्यस्तरीय तीन दिवसीय मेले के रूप में मनाया जाता है। जिला प्रशासन इस मेले को करवाता और अब मेले का बजट एक करोड़ पहुंच गया है।
बड़ी बहन के घर पर दो दिनों तक रुकती हैं माता
सोलन की अधिष्ठात्री देवी मां शूलिनी मेले के पहले दिन पालकी में बैठकर अपनी बड़ी बहन मां दुर्गा से मिलने पहुंचती है। दो बहनों के इस मिलन के साथ ही राज्य स्तरीय मां शूलिनी मेले का आगाज हो जाता है। मां शूलिनी अपने मंदिर से पालकी में बैठकर शहर की परिक्रमा करने के बाद गंज बाजार स्थित अपनी बड़ी बहन मां दुर्गा से मिलने पहुंचती है। मां शूलिनी तीन दिनों तक लोगों के दर्शानार्थ वहीं विराजमान रहती है।
सोलन एक ऐसा शहर जो शूलिनी माता के नाम पर बसा है। पूरी दुनिया में अपनी छाप छोड़ चुका सोलन माता शूलिनी के आशीर्वाद से दिन प्रतिदिन प्रगति कर रहा है। सोलन शहर हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले का जिला मुख्यालय है, और इसकी स्थापना एक सितंबर, 1972 को हुई थी। यह राज्य की राजधानी शिमला से 46 किलोमीटर जबकि 70 किमी दूर है। सोलन शहर को भारत के मशरूम शहर के नाम से भी जाना जाता है। सोलन शहर कालका-शिमला फोरलेन पर स्थित है। शहर में रेलवे मार्ग से भी आया जा सकता है। सोलन रेलवे स्टेशन शहर के बीचोबीच स्थित है। मंदिर के पुजारी की माने तो उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी करीब 200 सालों से माता शूलिनी देवी की पूजा अर्चना करता आ रहा है। उन्होंने बताया कि माता शूलिनी दुर्गा माता का ही अवतार है। माता का नाम शूलिनी इसलिए पड़ा, क्योंकि माता त्रिशूल धारी है। उनके अनुसार माता शूलिनी सोलन में बघाट रियासतों के राजाओं के समय से बसी है। जब बघाट रियासत के राजा सोलन में बसे थे, तो वो मां शूलिनी को अपने साथ ही सोलन लेकर आए थे। कहा जाता है कि माता शूलिनी बघाट रियासत के राजाओं की कुलदेवी थी और उनके हर कामों को पूर्ण करने वाली थी, तब से लेकर आज तक मां शूलिनी की सोलन शहर पर आपार कृपा है।
शूलिनी मेले में तीन दिनों तक नहीं रहती खानपान की चिंता
शूलिनी मेले में स्थानीय व्यापारी वर्ग व लोग भी खुलकर दान करते है। जिला के कोने कोने में दर्जनों भंडारे सड़कों पर लगे होते हैं। कहीं पर अलग अलग तरह के व्यंजन तो कहीं पर जूस, आइसक्रीम, खीर, पूड़े, चने भटूरे आदि अनेकों तरह के पकवान मेले में आने वाले हजारों की संख्या में आने वाले लोगों को खाने को मिलते हैं। लोग यदि जेब में सिर्फ किराया लेकर भी आए तो भी मजे में मेला घूमकर पेट भरकर वापिस जा सकते हैं। प्रदेश में इस तरह का यह पहला मेला है, जहां पर तीन दिनों तक सारा दिन दर्जनों भंडारे लगते हैं।