मंडी रियासत की विजय का प्रतीक है टारना मंदिर
मंडी का प्रसिद्ध शक्तिपीठ भगवती टारना श्यामाकाली का मंदिर श्रद्धालुओं की श्रद्धा और आस्था का केंद्र है। माता श्यामाकाली का यह मंदिर मंडी रियासत की विजय के प्रतीक के रूप में स्थापित है।
सन 1650 के पश्चात मंडी के राजा श्याम सेन ने सुकेत के राजा जीत सेन द्वारा उनके काले रंग को लेकर किए गए कटाक्ष का बदला लेने के लिए भगवती श्यामाकाली की अराधना कर यह मनौती मांगी थी कि अगर वह सुकेत के राजा को हराने में सफल रहा तो वह माता का भव्य मंदिर बनवाएगा। सुकेत के विरुद्ध लड़ाई पर जाने से पूर्व श्याम सेन ने अपनी सेना को ऐतिहासिक पड्डल मैदान में एकत्र कर स्वयं टारना माता के मंदिर में जाकर तलवार की धार से अपने अंगूठे से लहू निकालकर तिलक किया और प्रतिज्ञा ली। यह लड़ाई वर्तमान में बल्हघाटी के लोहारा के मैदान में लड़ी गई, जहां मंडी की सेना की जीत हुई और सुकेत का राजा जीतसेन मैदान छोड़ कर भागने लगा। मंडी के सैनिकों ने उसे पकड़ लिया। एक सैनिक तलवार से उसका गला काटने लगा, तो श्याम सेन ने उसे रोक दिया और जीतसेन को आजाद कर दिया। इस विजय के बाद श्याम सेन ने टारना की पहाडिय़ों में टारना माता श्यामा काली के भव्य मंदिर के निर्माण के आदेश दिए।
टारना की पहाडिय़ों में माता के प्रकट होने को लेकर एक कथा प्रचलित है। इसके अनुसार कभी यहां घना जंगल हुआ करता था। नगरवासियों के पशुओं को चराने यहां पर ग्वाले लाया करते थे। आसपास के क्षेत्रों की कन्याएं जंगल में लकडिय़ां बीनने आया करती थी। एक बार एक अति सुंदर कन्या को जंगल में अकेला पाकर एक ग्वाले की नीयत खराब हो गई। उस कन्या का नाम तारना था। ग्वाले से बचने के लिए तारना माता के मंदिर की ओर भागी और माता से अपनी रक्षा की प्रार्थना की। कहा जाता है कि जहां वह कन्या प्रार्थना कर रही थी वहां से धरती फट गई और वह कन्या उसमें समा गई, जबकि माता ने स्वयं बाघ का रूप धारण कर उस ग्वाले को मार दिया। इस घटना के बाद मंडी रियासत के लोगों ने तारना की मूर्ति बनाकर उसे देवी के रूप में पूजना शुरू कर दिया। कुछ लोगों का मानना है कि इस देवी ने श्यामसेन को तारा था। इसलिए इसका नाम तारना अथवा टारना पड़ा।