कांगड़ा वाली चामुंडा माता – जहां आज भी शिव-पार्वती करते हैं विश्राम @thesamskara

कांगड़ा वाली चामुंडा माता – जहां आज भी शिव-पार्वती करते हैं विश्राम…

माता चामुंडा को देवी दुर्गा का ही एक रूप माना जाता है और देवी दुर्गा हमारे हिंदू धर्म की एक शक्तिशाली और अपार कृपा बरसाने वाली माता के रूप में विख्यात है।

हिमाचल प्रदेश की चामुंडा देवी मंदिर में पूजे जाते हैं माता सती के पैर।

चामुंडा देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश राज्य के कांगड़ा जिले में स्थित एक प्रचीन मंदिर और एक प्रमुख आकर्षक स्थल है। चामुंडा देवी मंदिर का निर्माण वर्ष 1762 में उमेद सिंह ने करवाया था। यह मंदिर देवी काली को समर्पित है, जिन्हें युद्ध की देवी के रूप में जाना जाता है।

चामुंडा देवी मंदिर करीब सात सौ साल पुराना है जिसके पीछे की तरफ से गुफा जैसी संरचना है जिसको भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। चामुंडा देवी मंदिर को चामुंडा नंदिकेश्वर धाम के रूप में भी जाना जाता है जिसमें भगवान शिव और शक्ति का घर है। भगवान हनुमान और भैरव इस मंदिर के सामने वाले द्वार की रक्षा करते हैं और इन्हें देवी का रक्षक माना जाता है।

हजारों साल पहले धरती पर शुम्भ और निशुम्भ नामक दो दैत्यो ने राज कर लिया था। उन्होंने धरती पर इतने अत्याचार किये कि इससे परेशान होकर देवताओं व मनुष्यो ने शक्तिशाली देवी दुर्गा की आराधना की तो देवी दुर्गा ने कहा की वो जरुर उनकी इन दैत्यों से रक्षा करेंगी। इसके बाद दुर्गा जी ने कौशिकी के नाम से अवतार लिया इसके बाद शुम्भ और निशुम्भ के दूतो ने माता कौशिकी को देख लिया। दोनों ने शुम्भ और निशुम्भ से कहा कि आप तो तीनों लोगों के राजा है, आपके पास सब कुछ है लेकिन आपके पास एक सुंदर रानी भी होना चाहिए जो सारे संसार में सबसे सुंदर है। दूतों की इन बातों को सुनकर शुम्भ और निशुम्भ ने अपना एक दूत माता कौशिकी के पास भेजा और कहा कि कौशिकी से कहना कि शुम्भ और निशुम्भ तीनों लोको के राजा हैं और वो तुम्हे रानी बनाना चाहते हैं।

शुम्भ और निशुम्भ के कहने पर दूत ने ऐसा ही किया। कौशिकी ने दूत की बात सुनकर यह कहा कि में जानती हूँ कि वो दोनों बहुत शक्तिशाली हैं, लेकिन में प्रण ले चुकीं हूँ कि जो मुझे युद्ध में हरा देगा मैं उसी से विवाह करुँगी। जब यह बात दूत ने शुम्भ और निशुम्भ को जाकर बताई तो उन्होंने दो दूत चण्ड और मुण्ड को देवी के पास भेजा और कहा कि उसके केश पकड़ कर हमारे पास लाओ। जब चण्ड और मुण्ड ने वहां जाकर देवी कौशिकी से साथ चलने को कहा तो उन्होंने क्रोधित होकर अपना काली रूप धारण कर लिया और आसुरो को मार दिया। इन दोनों राक्षसों के सर काटकर देवी चामुंडा(काली) कोशिकी के पास लेकर आ गई जिससे खुश होकर देवी कोशिकी ने कहा कि तुमने इन दो राक्षसों को मारा है अब तुम्हारी प्रसिद्धी चामुंडा के नाम से पूरे संसार में होगी।

चामुंडा देवी मंदिर के इतिहास की बात करें तो इस मंदिर के इतिहास को लेकर भी एक कहानी बताई जाती है। 400 साल पहले राजा और पुजारी ने जब मंदिर का स्थान एक सही जगह पर परिवर्तित करने की अनुमति मांगी थी तो देवी ने पुजारी को सपने में दर्शन किये और उन्होंने मंदिर को स्थानांतरित करने की अनुमति देते हुए एक निश्चित स्थान पर खुदाई करने का आदेश दिया। जब उस जगह पर खुदाई की गई तो वहां पर एक चामुंडा देवी की मूर्ति पाई गई जिसके बाद चामुंडा देवी की मूर्ति को उसी जगह पर स्थापित किया गया और उसकी पूजा की जाने लगी।

जब राजा ने मूर्ति को बाहर लाने के लिए अपने लोगों को कहा तो लाख कोशिश के बाद भी वो उस मूर्ति को हिलाने में सक्षम नहीं हुए। इसे बाद एक बार देवी ने पुजारी को सपने में दर्शन किये और उन्होंने कहा वो सभी लोग मूर्ति को साधारण समझ कर उठाने की कोशिश कर रहे हैं। देवी ने पुजारी से कहा कि वे सुबह नहाकर पवित्र कपड़े पहन कर सम्मानजनक तरीके से मूर्ति को बाहर लायें, जो काम सारे लोग मिल कर नहीं कर पा रहे वो अकेला आदमी आसानी से कर सकेगा। जब पुजारी ने यह बात सभी लोगों को बताया कि यह देवी माँ की शक्ति थी कि वो मूर्ति को हिला तक नहीं पा रहे थे।

मंदिर के प्रांगण से आस-पास की पहाड़ी सुंदरता, जंगल और नदियां श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अध्यात्मिक उर्जा प्रदान करती है। मंदिर के बीच वाला प्रांगण क्षेत्र ध्यान मुद्रा के लिए सबसे उपयुक्त स्थान माना गया है। इसलिए आध्यात्मिक आनंद के लिए यहां अधिकतर श्रद्धालुओं को ध्यान करते देखा जा सकता है।

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